दारोगा का बेटा विजय बना UP पुलिस में DGP, उग्रवादियों का सफाया कर राष्ट्रपति से दो बार हासिल किया अवार्ड

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झांसी: बचपन में परिवार के वातावरण से मिली प्रेरणा ने दारोगा के बेटे को प्रदेश के पुलिस विभाग के नया मुखिया पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद पर पहुंचा दिया। खातीबाबा, प्रेम नगर निवासी आइपीएस विजय कुमार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त किया। खबर मिलते ही पड़ोसियों ने नए डीजीपी के परिवार को मिठाई खिलाकर खुशियां मनाईं। वर्ष 1988 बैच के आइपीएस विजय कुमार के पिता स्व. रामप्रसाद अहिरवार थाना प्रेमनगर में दारोगा थे। पिता को वर्दी में आते-जाते देखकर बचपन से ही पुलिस वर्दी से लगाव हो गया। वर्ष 1981 में पिता के निधन के बाद पुलिस वर्दी पहनने के जुनून में पीसीएस में चयन होने पर वांछित पद न मिलने के कारण ज्वाइन नहीं किया। दूसरे प्रयास में आइपीएस का पद मिला, तब ज्वाइन कर अपने बचपन का सपना साकार किया। हाईस्कूल की परीक्षा नेशनल हाफिज सिद्दीकी इण्टर कॉलेज से उत्तीर्ण करने के बाद राजकीय इण्टर कॉलेज से इण्टरमीडिएट की परीक्षा में मण्डल टॉप किया, जबकि उसी कक्षा में हाइस्कूल में प्रदेश टॉप करने वाला सहपाठी भी अध्ययनरत था।

IIT कानपुर से किया बीटेक

बचपन से ही मेधावी विजय ने प्रथम प्रयास में ही आइआइटी कानपुर से सिविल एंजिनियरिंग ब्रांच में बीटेक में प्रवेश लिया। यहीं से एमटेक करने के बाद दिल्ली जाकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी की। वहीं से उनका चयन आइपीएस में हुआ।

विजय कुमार का पैतृक गांव जालौन जनपद के सातोह में है। माता लज्जावती हैं, जबकि भाई हेमन्त कुमार बतौर पुलिस इंस्पेक्टर कानपुर में पदस्थ हैं। सबसे छोटा भाई जसवन्त कुमार झांसी में एक प्राइवेट इण्टर कॉलेज में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं। वह पत्नी सुमन, दो बेटे अनमोल और उमंग के साथ रहते हैं। बहन मनोरमा लखनऊ में है। पिता के निधन के बाद मां ने ही परिवार का लालन- पालन किया तथा पढ़ा-लिखाकर इस योग्य बनाया।

इन पदों पर यहां रही पोस्टिंग

एएसपी : गोरखपुर, नैनीताल और रुद्रपुर।

पुलिस अधीक्षक नगर/देहात : बरेली।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक : पीलीभीत, बाँदा, महाराजगंज, मुजफ्फरनगर, गोरखपुर, प्रयागराज एवं लखनऊ।

पुलिस उप-महानिरीक्षक परिक्षेत्र : प्रयागराज, मेरठ और आजमगढ़।

पुलिस महानिरीक्षक जोन :

आगरा, कानपुर एवं गोरखपुर।

अपर पुलिस महानिदेशक

सुरक्षा, यातायात, भर्ती बोर्ड, पुलिस महानिदेशक होमगार्ड, सीबीसीआईडी एवं सतर्कता।

अन्तर्राष्ट्रीय पुरातत्ववेत्ता

विजय कुमार की पहचान पुलिस अधिकारी के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय पुरातत्ववेत्ता के रूप में भी है। उन्होंने बुन्देलखण्ड के पुरातत्व अवशेष का गहन अध्ययन किया है। चित्रकूट, बांदा एवं ललितपुर में पुरातत्व की दृष्टि से उपयोगी वस्तुओं के ऊपर लगभग 1,500 पेज की एक पुस्तक भी लिखी है। चित्रकूट में एसएसपी रहे तब वहां की सैकड़ों गुफाओं में स्वयं जाकर चित्र लिए। अक्षान्तर और देशान्तर के साथ प्रमाणित नुकीले पत्थरों की जानकारी एकत्र की। आर्कलॉजी पर हर 2 माह में अन्तर्राष्ट्रीय जर्नल का ऑनलाइन प्रकाशन करते हैं। जानकर सुखद आश्चर्य होगा इसके पाठकों की संख्या दुनियाभर में 1 लाख से अधिक है। यह जनरल आर्कलॉजी में टॉप पर है।

घर पर बनाया निजी संग्रहालय

विजय की आर्कलॉजी में अभिरुचि का अन्दाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि लखनऊ स्थित अपने निवास के पूरे बेसमेंट में निजी संग्रहालय बना रखा है। इसमें बुन्देलखण्ड के पत्थरों एवं पुरातत्व से जुड़ी हुई वस्तुओं को रखा गया है। विजय कुमार का मानना है कि बुन्देलखंड की धरोहर को सामने लाने का बहुत कम काम हुआ है। देवगढ़ (ललितपुर) के मन्दिर सहित बुन्देलखंड को पुरातत्व की दृष्टि से विश्व के सामने लाने की योजना है। जनवरी 2024 में सेवानिवृत्ति के बाद एक संस्थान बनाकर राष्ट्र को समर्पित करने की योजना पर प्रयास जारी है।

दो बार हो चुके हैं राष्ट्रपति से सम्मानित

पीलीभीत के एसएसपी रहते हुए उन्होंने उग्रवादियों का सफाया किया था। इसके लिए राष्ट्रपति ने विजय को सम्मानित किया। इसके अलावा भी उत्कृष्ट कार्य के लिए राष्ट्रपति ने एक बार और सम्मानित किया।

बेटे के जाने का गम

विजय कुमार जब आइजी आगरा के पद पर थे, उस समय डेंगू से बेटे के निधन हो गया था। बेटे के निधन का गम आज भी उन्हें सताता है। समाज में इतने घुले मिले थे कि बेटे के निधन पर आगरा के सभी स्कूल-कॉलेज शोक में स्वेच्छा से बन्द रखे गए थे। इण्टरमीडिएट के सहपाठी लोक निर्माण विभाग उत्तर प्रदेश में अधिशासी अभियन्ता एंजि. प्रभात सिंह चिरार ने बताया कि विजय कॉलेज के समय से ही मेधावी रहे हैं। पुरातत्व के क्षेत्र में उनके पास शोधपरक जानकारी का इतना भंडरा है कि 10 वर्ष तक जनरल प्रकाशित हो सकता है। हम लोग राकेश विजयवर्गीय, राजेश नारायण एवं स्व. टीजी फिलिप साइकिल से जीआइसी पढ़ने जाते थे। पुलिस महकमे के सर्वोच्च पद पर उनका पहुंचना झांसी के लिए गौरव की बात है।

सन्तोष शर्मा ने बताया कि देवगढ़ के मन्दिरों के ऊपर शोध करने के लिए कई बार वह साथ गए। इसके ऊपर एक किताब अंग्रेजी में प्रकाशित की गई है। इण्टैक ललितपुर ने विजय कुमार का सम्मान किया है।

हाईस्कूल के सहपाठी रेलकर्मी मुश्ताक खान ने बताया कि विजय कक्षा के मॉनिटर थे। पढ़ने में बहुत होशियार थे। वर्ष 1978 में हाफिज सिद्दीकी कॉलेज में अमानुल्लाह प्रधानाचार्य थे। उन्होंने एक प्रतियोगी पुस्तक हम लोगों को पढ़ने को दी। उसमें सिविल सर्विसेज में चयनित आइएएस हरिकेश पाण्डेय का साक्षात्कार छपा था। उसको पढ़ने के बाद ही विजय ने अधिकारी बनने का निश्चय किया था।

छोटे भाई जसवन्त कुमार ने बताया कि बड़े भाई साल में एक बार निश्चित ही यहां आते हैं। कोरोना काल के बाद से उनका झांसी आना नहीं हो पाया है। परिवार को एक सूत्र में बांधे हुए हैं।

By जागरण via Dailyhunt 

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