VIDEO: हरेला पर्व के अवसर पर सीएम धामी ने किया वृक्षारोपण, जानिए क्यों और कब मनाया जाता है ये पर्व ?

खबर उत्तराखंड

देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हरेला पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री आवास परिसर में वृक्षारोपण किया। उन्होंने आम की पूषा श्रेष्ठ प्रजाति का पौधा लगाया। मुख्यमंत्री ने कहा कि हरेला प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन का पर्व है। हरेला पर्व के उपलक्ष्य में प्रदेश में सामाजिक संगठनों, संस्थाओं एवं विभागों के माध्यम से व्यापक स्तर से वृक्षारोपण किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा जल संरक्षण एवं जल धाराओं के पुनर्जीवन की दिशा में राज्य में अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा देश में जल संरक्षण और संवर्द्धन के लिए सभी को आगे आने का अहवाहन किया गया है। राज्य में इस दिशा में तेजी से कार्य हो रहे हैं। राज्य में 1200 से अधिक अमृत सरोवर बनाए गए हैं। इस दिशा में आगे भी लगातार कार्य होंगे।

हरेला पर्व के अवसर पर गीता पुष्कर धामी एवं कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने भी वृक्षारोपण किया। इस अवसर पर मुख्यमंत्री आवास में विभिन्न प्रजातियों के 51 पौधे लगाए गए। इस अवसर पर अपर सचिव रणवीर सिंह चौहान, मुख्य वन संरक्षक वन पंचायत डॉ. पराग मधुकर धकाते, मुख्य उद्यान अधिकारी डॉ. मीनाक्षी जोशी, उद्यान प्रभारी दीपक पुरोहित उपस्थित थे।

क्यों मनाया जाता है हरेला ?

शास्त्रों के अनुसार हरेला पर्व से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है. हरेले के तिनकों को इष्ट देव को अर्पित कर धन-धान्य, दुधारू जानवरों की रक्षा और परिवार व प्राकृतिक की कुशलता की कामना की जाती है. देवभूमि उत्तराखंड में ऋतुओं के अनुसार कई त्‍योहार मनाए जाते हैं, ये त्योहार यहां की परंपरा और संस्कृति को जीवंत रखे हुए हैं. हरेला का शाब्दिक अर्थ होता है हरियाली. श्रावण मास में हरेला का विशेष महत्व होता है क्योंकि यह महीना भगवान शिव का विशेष महीना होता है. हरियाली और प्राकृतिक संरक्षण संवर्धन के प्रतीक इस पर्व के मौके पर लोगों द्वारा अपने इष्ट देवता और मंदिरों में हरेला चढ़ाने का परंपरा है.

साथ ही धन धान्य और परिवार की सुख-शांति के कामना की जाती है. हरेला प्रकृति से जुड़ा हुआ पर्व है, जो प्राकृतिक के रक्षक भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. हरेला के पूर्व संध्या पर हरकाली पूजन यानी डेकर पूजा की परंपरा है.इस पूजा में घर के आंगन से ही शुद्ध मिट्टी लेकर उससे भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की छोटी-छोटी मूर्तियां बनाई जाती हैं. इसके बाद इन मूर्तियों को सुंदर रंगों से रंगा जाता है.


सूखने के पश्चात इनका श्रृंगार किया जाता है, जिसके बाद हरेला के सामने इन मूर्तियों को रखकर उनका पूजन किया जाता है और बड़े बुजुर्गों से आशीर्वाद लिया जाता है. शास्त्रों के अनुसार हरेला से 9 दिन पहले पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर बर्तन में मिट्टी रखकर अनाज को बोया जाता है. जिसे मंदिर के कक्ष में रखा जाता है. दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है, जहां 9 दिन बाद हरेले की विधि-विधान से पूजा कर इष्ट देवता और भगवान को समर्पित किया जाता है. साथ ही लोग पर्व पर भगवान से परिवार और प्रकृति की खुशहाली की कामना करते हैं.

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