अलीगढ़ : वर्ष 2024 के लिए अभी से तैयारी में जुटी भाजपा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति प्रो. तारिक मंसूर के जरिए मुस्लिमों को साधेगी। वे पसमांदा मुसलमान है। भाजपा इसी समाज में पैठ बनाने के लिए यात्रा निकाल रही है। भाजपा उदारवादी मुस्लिम चेहरों पर शुरु से ही प्रयोग करती रही है। अटल बिहारी सरकार में विदेश मंत्री रहे सिकंदर बख्त, नजमा हेपतुल्लाह, एमजे अकबर, राष्ट्रीय प्रवक्ता शहनबाज, पूर्व मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ऐसे ही चेहरा हैं। उन्हें तीन माह पहले एमएलसी बनाया गया था। अब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर पसमांदा मुसलमानों में भाजपा का नया चेहरा होने का संकेत दिया है।
विरासत में मिली है राजनीति
प्रो. मंसूर को राजनीति विरासत में मिली है। उनके दादा अब्दुल खालिक मूल रूप से मेरठ के निवासी थे। एएमयू बनने से पहले मोहम्मडन ओरिएंटल (एमएओ) कालेज में वह पढ़ाई करने के लिए अलीगढ़ आए थे। कानून की डिग्री लेने के बाद विधि विभाग में ही शिक्षक बन गए। उस समय वकालात के साथ नौकरी करने का भी प्रावधान था। विधि विभाग में महात्मा गांधी के करीबी रहे अब्दुल मजीद ख्वाजा ने शिक्षक का पद छोड़ा था। रिक्त हुए इसी पद पर उन्हें नौकरी मिली। सेवा निवृत्ति के बाद अब्दुल खालिक की रुचि राजनीति में हुई तो 1931 में उन्होंने अलीगढ़ नगर पालिका के अध्यक्ष पद पर चुनाव लड़ा और जीते। बेटा हफीज उर रहमान भी एएमयू के कानून विभाग में डीन रहे।
भाई भी रहे रहे कुलपति
अब्दूल खालिक ने बेटा हफीज उर रहमान के नाम पर ही मैरिस रोड पर हफीज मंजिल नाम से कोठी बनवाई। प्रो. तारिक मंसूर अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनके बड़े भाई प्रो. रशीद उर रहमान जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। सऊदी अरब में भी प्रोफेसर रहे। सऊदी अरब में हुए एक सड़क हादसे में उनका निधन हो गया था। मो. फारुख और खालिद भी उनके भाई हैं। प्रो. तारिक मंसूर ने रामघाट रोड स्थित अवर लेडी फातिमा से स्कूली पढ़ाई की। इसके बाद एएमयू के जेएन मेडिकल कालेज से एमबीबीएस किया। सर्जरी एमएस किया। 1982 में उनका चयन सर्जरी विभाग में हो गया। 1988-99 में तारिक मंसूर का नाम भी नगर पालिका अध्यक्ष पद के दावेदारों में शामिल हुआ था, हालांकि चुनाव नहीं लड़ सके थे। सपा नेता जफर आलम चुनाव लड़े थे।
कुलपति बनने तक का सफर
प्रो. तारिक मंसूर जेएन मेडिकल कालेज के सर्जरी विभाग के चेयरमैन, डीन के अलावा प्रिंसिपल रहे। 2013 से 2017 तक गेम्स कमेटी के सचिव रहे हैं। मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल रहने के दौरान ही उनका नाम कुलपति के लिए चर्चाओं में आया था। पूर्व कुलपति जमीर उद्दीन शाह ने कुलपति रहते हुए नए कुलपति चयन की प्रक्रिया शुरू की थी। तब एग्जीक्यूटिव काउंसिल में पांच नामों का पैनल बनाया गया। इनमें तारिक मंसूर का नाम भी शाामिल था। इन पांच नामों को यूनिवर्सिटी कोर्ट में भेजा गया। वहां से तारिक मंसूर समेत तीन नामों को पैनल बनाकर राष्ट्रपति यानी यूनिवर्सिटी के विजिटर के पास भेजा गया। विजिटर ने प्रो. तारिक मंसूर के नाम पर मुहर लगाई। इस तरह तारिक मंसूर ने 17 मई 2017 को एएएमयू के 24 वें कुुलपति के रूप में कार्यभार संभाला। 17 मई 2022 को उनका कार्यकाल समाप्त होना था। लेकिन राष्ट्रपति (विजिटर) ने एक वर्ष का सेवा विस्तार दिया। कुलपति का कार्यकाल 17 मई 2023 को पूरा होना था, लेकिन उससे पहले ही राज्यपाल ने उन्हें एमएलसी मनोनीत कर दिया। इसके चलते उन्होंने दो अप्रैल 2023 को कुलपति पद से इस्तीफा दे दिया।
भाजपा से रहे अच्छे संबंध
कुलपति रहने के दौरान तारिक मंसूर आरएसएस और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं से संबंध बनाते गए। वे आरएसएस के बड़े आयोजनों में शामिल होते थे।
एमएलसी बनाए जाने के पीछे आरएसएस के नेताओं के साथ संबंधों को भी माना गया। इसी का परिणाम था कि एएमयू के शताब्दी वर्ष समारोह को पीएम नरेन्द्र मोदी ने वर्चुअल संबोधित किया था। 2022 में उनके बेटे के रिसेप्शन में आरएसएस के राष्ट्रीय सह सरकार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल, वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार और सुनील आंबेकर सहित कई भाजपा नेता शामिल हुए थे।
तब तारिक मंसूर के कुलपति पद पर पांच साल भी पूरे हो रहे थे। एएमयू परिसर में तभी से चर्चा शुरु हो गई थी केंद्र सरकार तारिक मंसूर को अभी विदा नहीं होने देगी। समारोह के कुछ दिन बाद ही कुलपति पद पर उनका एक साल का सेवा विस्तार कर दिया।