वाराणसी: क्रूर मौत ने आखिर पांचवें दिन कोमल से उसकी जिंदगी छीन ही ली। बिटिया को बचाने के लिए चिकित्सकों के प्रयास और मां की पूजा-अर्चना उसे कोमा से लौटा भी लाई लेकिन मौत के पलटवार ने सबकुछ खत्म करके रख दिया। सुनीता मंदिर में ही थीं, जब उन्हें बेटी के जिंदगी से जंग हारने की सूचना मिली। चार दिनों से बंधी उम्मीद टूटी तो मां के करुण क्रंदन से आस-पड़ोस के लोग भी जार-जार रोए।
यह है मामला
शुक्रवार की रात संतोष और मां सुनीता बिटिया के बचने को लेकर आशान्वित थे, लेकिन शनिवार को बेटी की सांसें थमीं तो सुनीता को विश्वास ही नहीं हो रहा था। वह बिलखती आस-पड़ोस के लोगों से हामी भराने की कोशिश करती रहीं कि कोई कह दे बिटिया ठीक है। मां, बड़ी बहन को बिलखना मोहल्ले वालों को भी अखर जा रहा था। उनके लिए आंसू थामना मुश्किल था। हालांकि, यह सब कुछ देर ही चला, क्यों कि संतोष स्वजन को प्रयागराज भेज दिए। उन्होंने कहा कि सिगरा थाने में तहरीर दे दी है।
बंदर ने बिटिया के सिर पर गिराया था पत्थर
प्रयागराज के थाना कोरांव अंतर्गत बदौआ कला निवासी संतोष वाराणसी की छोटी गैबी में पत्नी सुनीता, बेटी काजल, कोमल और बेटा निखिल के साथ किराए का मकान में रहते थे। आठ अगस्त को छठवीं में पढ़ रही काजल अपनी गली में जा रही थी कि दूसरी मंजिल से बंदर द्वारा गिराया गया पत्थर उसके सिर पर आ गिरा था। सिर में गंभीर चोट लगने से बिटिया कोमा में चली गई। चिकित्सक ने पसीना भी बहाया, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका।