गोरखपुर: गोरखपुर जिले में पिता व दो बच्चियों के आत्महत्या की घटना ने सभी को दहला के रख दिया। घटना के बारे में जानकारी होने पर हर किसी के मुंह से एक ही बात निकल रही थी कि ‘ईश्वर ऐसा दिन किसी को न दिखाए’। गरीबी के चलते पिता ने खुद के साथ अपने कलेजे के टुकड़ों को भी फांसी के फंदे पर लटका दिया। मान्या के कमरे में मिली डायरी और नोटबुक को पढ़ने के बाद पुलिसकर्मी भी भावुक हो गए। मान्या अपनी मां से बहुत प्यार करती थी। उसने अपनी डायरी में लिखा है कि वो मेरी मां थी, जिसे तुमने छिन लिया मुझसे। अब मेरे पापा हम सब के लिए जूझ रहे हैं। तुम बहुत निर्दयी हो। और मुझे लगता है मैं एक अभिशाप हूं। अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता ये दर्द और ये दुख भरी जिंदगी। ये जिंदगी बहुत कठिन है। मुझे थोड़ी सी खुशियां दे दो। सबकी लाइफ में प्रॉब्लम होती है, मुझे नहीं पता वो कैसे जीते हैं। मैं तुमसे लडऩा चाहती हूं। पर प्रॉब्लम्स की एक लंबी कतार है। ए जिंदगी मेरे साथ इतनी निर्दयी मत बनो मैं इतनी मजबूत नहीं हूं, प्लीज मुझे बख्श दो।
जिंदगी ने दी पैसों की प्रॉब्लम
मान्या ने अपनी डायरी में दूसरे पन्ने पर लिखा है कि जिंदगी बहुत निर्दयी है। इसने हमे पैसों की प्रॉब्लम दी। इसके बावजूद भी हमने अपने आपको मजबूत बनाया। ताकि हम यह न सोचें कि मैं ही क्यों। बल्कि हम चुनौती का सामना करेंगे।
रोती हूं तो आंखें दर्द होती हैं
तीसरे पन्ने पर लिखा कि मेरा दिल अब पत्थर का हो चुका है। जब मैं रोती हूं मेरी आंखों में दर्द होता है। फिर मैं रोती हूं मेरा सिर फटता है। जिंदगी में समस्याओं, दुख, रोना, अपमानों को कोई समझता नहीं है। इस पूरी दुनिया में कोई ऐसा नहीं है जो मुझे समझ सके। सांत्वना देने वाला भी कोई नहीं। मुझे दुनिया को दिखाना होता है कि मैं स्ट्रॉंग हूं।
विश्वासघात से मैं टूट चुकी हूं
मैं अंदर से टूट चुकी हूं विश्वासघात के कारण, हर एक इंसान से मुझे मिला। कोई रिश्ते सच्चे नहीं हैं, इस दुनिया में सिवाय मेरे पापा और बहन के। हे भगवान मेरी आंखे दर्द कर रही हैं। मैं डरी हुई हूं। कब मेरे आंसू खत्म होंगे। पता नहीं मैं कब खुश हो पाऊंगी इस जिंदगी में। हमेशा जिंदगी एक नया ब्लास्ट लेकर आती है। मैं थक चुकी हूं। प्लीज मैंने अपनी सबसे कीमती चीज खो दी। प्लीज बस करो मुझे आराम करना है मैं भीख मांग रही हूं।
वो सोचते हैं बिन मां के बच्चे गंदा काम करेंगे
इसी तरह चौथे पन्ने पर लिखा है कि मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है कि जिसे मैं अपना दोस्ता मानती थी वो मेरे और मेरे फैमिली के बारे में ऐसा सोचती थी। मुझे लगता था कि वो मेरे से बात नहीं कर रही है। तो वो किसी टेंशन में होगी। पर नहीं सभी के जैसे उसकी भी सेम मानसिकता थी कि हम बिना मां के बच्चे हैं, और गंदा काम करेंगे। कैसे वो सोच सकती है।
प्लीज डायरी ये बातें किसी से मत कहना
जिंदगी का पहिया फिर एक मोड़ पर आया जहां मुझे लगा कि मैं अपनी जिंदगी खत्म कर लूं कौन हैं वो लोग जो मेरी फैमिली को बर्बाद करना चाहते हैं। हां मुझे पता है कौन हैं वो लोग लेकिन वो क्यों हमे खुश नहीं देखना चाहते हैं। हे भगवान अब मैं और नहीं लिख सकती हूं। मैं अपने आप को यहीं रोक रही हूं। मेरा दम घुट रहा है। प्लीज डायरी प्लीज ये बातें कभी किसी को मत बताना। मैं खुद से इन पन्नों को फाड़ दूंगी, जब खुशियां मिलेंगी।
कांपते हाथों से ओमप्रकाश ने दी मुखाग्नि
पोस्टमार्टम के बाद मंगलवार की शाम राजघाट के राप्ती तट पर जितेंद्र व उनकी दोनों बेटियों का दाह-संस्कार हुआ।कांपते हुए हाथों से ओमप्रकाश ने मुखाग्नि दी। सांत्वना देने पहुंचे रिश्तेदारों से रोते हुए बोल रहे थे अब किसके लिए जिंदा रहूं। दो साल पहले बहू सिम्मी छोड़कर चली गई। चार माह पहले पत्नी सुधा की मौत हो गई।बेटा और पौत्रियां भी छोड़कर चली गईं।