कोटद्वार: कोटद्वार दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल से सुबह 3:50 बजे कोटद्वार पहुंची नई एक्सप्रेस ट्रेन खड़ी होने के लिए नजीबाबाद जा रही थी। इसी बीच नजीबाबाद वानप्रभा के कौड़िया रेंज में एक हाथी ट्रेन की चपेट में आ गया। ट्रेन की चपेट में आने से हाथी की मौके पर मौत हो गई। घटनास्थल पर बिजली की लाइन भी क्षतिग्रस्त हुई है। प्रदेश में ट्रेन से कटकर हाथियों की मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। इससे पहले हरिद्वार-लक्सर रेलवे ट्रैक पर सीतापुर फाटक से पास एक नर हाथी की उपासना एक्सप्रेस ट्रेन की चपेट में आकर मौत हो गई।
बीते 22 सालों में प्रदेश में 508 हाथियों की मौत कई कारणों से हुई है, इनमें से 23 हाथी ट्रेन से कटकर मरे हैं। अकेले 16 हाथी देहरादून-हरिद्वार-देहरादून रेलवे ट्रैक पर ट्रेन की चपेट में आए हैं। प्रदेश में बीते 12 सालों में हाथियों का कुनबा बढ़ा है, लेकिन इनकी मृत्यु दर में कोई कमी नहीं आई है। वर्ष 2001 से आज तक 508 हाथियों की मौत बड़ा आंकड़ा है। हालांकि, हाथियों की सबसे अधिक मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है।
नौ हाथी पोचिंग में मारे गए
इस दौरान वर्ष 2001 से लेकर अब तक कुल 184 हाथी प्राकृतिक मौत मरे। वहीं, आपसी संघर्ष में 96 हाथी मारे गए, जबकि विभिन्न दुर्घटनाओं में 78 हाथी मारे गए। इसके अलावा करंट लगने से 43, जहर खाने से एक हाथी की मौत हुई। नौ हाथी पोचिंग में मारे गए तो 23 हाथियों की मौत ट्रेन से कटकर हुई है।
इसके अलावा लोगों के लिए खतरनाक घोषित होने पर एक हाथी की मौत हुई तो 71 मामलों में हाथी की मौत का पता नहीं चल पाया। इधर, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डॉ. समीर सिन्हा का कहना है कि रेलवे ट्रैक पर हाथियों के कटने के मामलों में कमी लाने के लिए विभिन्न स्तरों पर प्रयास किए जा रहे हैं।
दून-हरिद्वार रेलवे ट्रैक पर गई 16 हाथियों की जान
राज्य गठन से अब तक 16 हाथी देहरादून-हरिद्वार रेलवे ट्रैक पर ट्रेन से कटे हैं। 19 अप्रैल 2019 को सीतापुर रेलवे फाटक पर ही रेलवे ट्रैक पार करते समय दो टस्कर हाथियों की मौत हो गई थी। 13 जनवरी 2013 को भी इसी इलाके में एक साथ दो हाथियों की ट्रेन की चपेट में आने जान चली गई थी। 17 फरवरी 2018 व 20 मार्च 2018 को नंदा देवी एक्सप्रेस की चपेट में आने से दो हाथियों की मौत हुई। इसके बाद 26 जून 2018 को काठगोदाम एक्सप्रेस की चपेट में आने से एक हाथी की मौत हो गई थी। इसी तरह से राज्य गठन के बाद से अब तक 16 हाथी ट्रेनों का शिकार बन चुके हैं।