नई दिल्ली: लोकसभा में बुधवार को तीन नए आपराधिक विधेयक पास हो गए. इससे जल्द न्याय मिलने की आस जगी है. भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कई जरुरी प्रावधान किए गए हैं.
इसमें इलेक्ट्रॉनिक तरीके से लिए गए बयान और रिकॉर्ड को साक्ष्य और दस्तावेज के रूप में शामिल किया गया है. इससे साक्ष्य के तौर पर टेक्नोलॉजी का भरपूर इस्तेमाल किया जाएगा. फ्यूचर के लिए, मोबाइल, कैमरा, सर्वर, आईएमआई, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग आदि का भरपूर इस्तेमाल होगा. साथ ही हिरासत की लिस्ट सभी पुलिस थानों पर रखनी होगी. इसको हर 24 घंटे में अपडेट किया जाएगा. अब जानकारी छुपाने पर थानेदार पर कार्रवाई और प्रमोशन रुक जाएगा.
7 साल से ज्यादा सजा के सभी केस में फोरेंसिक मेंडेटरी
वहीं फोरेंसिक साइंस 7 साल से ज्यादा सजा के सभी केस में मेंडेटरी होगी. बेल, बॉन्ड और टेररिज्म की कानूनी परिभाषा पहली बार दिया गया. अब राजद्रोह की जगह देशद्रोह होगा. किसी भी व्यक्ति के खिलाफ बोलना, लिखना या कहना राजद्रोह की श्रेणी में नहीं आएगा. इसके अलावा पहली बार मॉब लिंचिंग पर मैक्सिमम फांसी की सजा का प्रवधान किया गया है. मॉब लिंचिग को डिफाइन करते हुए कहा गया है कि अगर 5 से ज्यादा लोग गुनाह में शामिल हैं.
45 दिन अंदर लोअर कोर्ट को देना होगा वर्डिक्ट
अब देश द्रोह कर विदेश भागे हुए अब्सकॉन्डर के लिए ट्रायल हो सकेगा. सजायाफ्ता होने के बाद इससे ट्रीटी के जरिए विदेशों से देश में वापस ला पाना आसान होगा. Pocso में 15 को 18 कर दिया गया था मगर सीआरपीसी में फांसी नहीं था. डायरेक्टर ऑफ प्रॉसिक्यूशन, अब पीपी मनमानी कर पायेगा. वहीं कानून से फिलहाल एडल्ट्री को हटा दिया गया है. आईपीसी के धारा 304 के तहत गैर इरादतन मौत पर डॉक्टर को महज 2 साल की सजा होगी बाकि सबको 10 साल की सजा का प्रावधान है. अब केस हियरिंग कंप्लीट होने के बाद 45 दिन अंदर लोअर कोर्ट को वर्डिक्ट देना होगा, उसके 7 दिन के अंदर सजा देना होगा. अब लोअर कोर्ट के वकील को सिर्फ दो ही डेट मिलेगा.
नए बिल में बदलाव की प्रमुख बातें
कंसल्टेशन:
- क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के कानूनों में रिफार्म की यह प्रक्रिया 2019 में प्रारंभ की गई थी.
- विभिन्न हितधारकों से इस संदर्भ में सुझाव मांगे गए.
- 2019 को यह गृह मंत्रालय ने इस सुधार प्रक्रिया की शुरुवात की.
- गृहमंत्री ने सितम्बर 2019 में सभी राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों, उपराज्यपालों/प्रशासकों को पत्र लिखा.
- जनवरी 2020 में भारत के मुख्य न्यायाधीश, हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों, बार काउंसिलों और विधि विश्वविद्यालयों और दिसम्बर 2021 में माननीय संसद सदस्यों से भी सुझाव मांगे गए.
- BPRD ने सभी IPS अधिकारियों को सुझाव मांगे.
- मार्च 2020 को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, दिल्ली के कुलपति की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की गई.
- इसमें कुल 3200 सुझाव प्राप्त हुए.
- 18 राज्यों, 06 संघ राज्य क्षेत्रों, भारत के सुप्रीम कोर्ट, 16 उच्च न्यायालयों, 27 न्यायिक अकादमियों- विधि विश्वविद्यालयों, संसद सदस्यों, IPS अधिकारीयों, पुलिस बलों ने भी सुझाव भेजें.
- गृह मंत्री ने 150 से ज्यादा बैठकें की. इन सुझावों पर गृह मंत्रालय में गहन विचार-विमर्श किया गया.
परिवर्तन
भारतीय न्याय संहिता-
- इसमें 358 धाराएं होंगी (IPC की 511 धाराओं के स्थान पर)
- 20 नए अपराधों को जोड़ा गया है.
- 33 अपराधों में कारावास की सजा को बढ़ाया गया है.
- 83 अपराधों में जुर्माने की सजा राशि को बढ़ाया गया है.
- 23 अपराधों में अनिवार्य न्यूनतम सजा शुरु की गई है.
- 6 अपराधों में सामुदायिक सेवा का दंड शुरु किया गया है.
- 19 धाराएं निरस्त/हटा दी गई हैं.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता
- इसमें 531 सेक्शन होंगे (CrPC की 484 धाराओं के स्थान पर)
- कुल 177 प्रोविजन में बदलाव हुआ है.
- 9 नए सेक्शन, 39 नए सब-सेक्शन जोड़े गए हैं तथा 44 नए प्रोविजन तथा स्पष्टीकरण जोड़े गए हैं.
- 35 सेक्शन में टाइमलाइन जोड़ी गई है.
- 35 जगह पर ऑडियो-विडियो का प्रावधान जोड़ा गया है.
- 14 धाराएं निरस्त/हटा दी गई हैं.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम-
- इसमें 170 धाराएं होंगी (मूल 167 धाराओं के स्थान पर)
- कुल 24 धाराओं में बदलाव किया गया है,
- 2 नई धारा, 6 उप-धाराएं जोड़ी गई हैं तथा 6 धाराएं निरस्त/हटा दी गई हैं.
भारतीय न्याय संहिता : प्रमुख फीचर
- भारतीय जरूरतों के अनुसार प्रायोरिटी
- ब्रिटिश शासन को मानव-वध या महिलाओं पर अत्याचार से महत्त्वपूर्ण राजद्रोह और खजाने की रक्षा थी.
- इन तीन कानूनों में महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराधों, हत्या और राष्ट्र के विरुद्ध अपराधों को प्रमुखता दी गई है.
- इन कानूनों की प्रायोरिटी भारतीयों को न्याय देने का है, उनके मानवाधिकारों के रक्षा की है.
महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध
- भारतीय न्याय संहिता ने यौन अपराधों से निपटने के लिए ‘महिलाओं और बच्चों के प्रति अपराध’ नामक एक नया अध्याय पेश किया है.
- इस विधेयक में 18 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं के बलात्कार से संबंधित प्रोविजन में बदलाव का प्रस्ताव कर रहा है.
- नाबालिग महिलाओं के सामूहिक बलात्कार को पॉक्सो के साथ सुसंगत बनाता है.
- 18 वर्ष से कम आयु की बच्चियों के मामले में आजीवन कारावास या मृत्यु दण्ड का प्रावधान किया गया है.
- गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान.
- 18 वर्ष से कम उम्र की स्त्री के साथ सामूहिक बलात्कार का एक नयी अपराध केटेगरी.
- धोखे से यौन संबंध बनाने या विवाह करने के सच्चे इरादे के बिना विवाह करने का वादा करने वाले व्यक्तियों के लिए लक्षित दंड का प्रावधान करता है.
आतंकवाद
भारतीय न्याय संहिता में पहली बार टेररिज्म की व्याख्या की गई है. इसे दंडनीय अपराध बना दिया गया है.
व्याख्या : भारतीय न्याय संहिता खंड 113. (1)
जो कोई, भारत की एकता, अखंडता, संप्रभूता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा या प्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के आशय से या भारत में या किसी विदेश में जनता अथवा जनता के किसी वर्ग में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के आशय से बमों, डाइनामाइट, विस्फोटक पदार्थों, अपायकर गैसों, न्यूक्लीयर का उपयोग करके ऐसा कार्य करता है, जिससे, किसी व्यक्ति या व्यक्तियों की मृत्यु होती है, संपत्ति की हानि होता है, या करेंसी के निर्माण या उसकी तस्करी या परिचालन तो वह आतंकवादी कार्य करता है.
- आतंकी कृत्य मृत्युदंड या आजीवन कारावास के साथ दंडनीय है, जिसमें पैरोल नहीं होगा.
- आतंकी अपराधों की एक श्रृंखला भी पेश की गई है.
- सार्वजनिक सुविधाओं या निजी संपत्ति को नष्ट करना अपराध है.
- ऐसे कृत्यों को भी इस खंड के तहत शामिल किया गया है, जिनसे ‘महत्वपूर्ण अवसंरचना की क्षति या विनाश के कारण व्यापक हानि’ होती है.
संगठित अपराध (ऑर्गनाइज्ड क्राइम)
- संगठित अपराध से संबंधित एक नई दांडिक धारा जोड़ी गई है.
- भारतीय न्याय संहिता (1) में पहली बार संगठित अपराध की व्याख्या की गई है.
- सिंडिकेट से की गई विधिविरुद्ध गतिविधि को दंडनीय बनाया है.
- नए प्रावधानों में सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववादी गतिविधियां अथवा भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य को जोड़ा गया है.
- छोटे संगठित अपराधों को भी अपराध घोषित किया गया है, जिसके लिए 7 साल तक की कैद हो सकती है. इससे संबंधित प्रावधान खंड 112 में हैं.
- आर्थिक अपराध की व्याख्या भी की गई है : करेंसी नोट, बैंक नोट और सरकारी स्टापों का हेरफेर, कोई स्कीम चलाना या किसी बैंक/वित्तीय संस्था में गड़बड़ ऐसे कृत्य शामिल हैं.
- संगठित अपराध में, किसी व्यक्ति की मृत्यु हो गई है, तो आरोपी को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास की सजा.
- जुर्माना भी लगाया जाएगा, जो 10 लाख रुपये से कम नहीं होगा.
- संगठित अपराध में सहायता करने वालों के लिए भी सजा का प्रावधान किया गया है.
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रावधान
- मॉब लिंचिंग का नया प्रावधान :नस्ल, जाति, समुदाय आदि के आधार पर की गई हत्या से संबंधित अपराध का एक नया प्रावधान सम्मिलित किया गया है, जिसके लिये आजीवन कारावास अथवा मृत्युदंड की सजा का प्रावधान किया गया है.
- स्नैचिंग का भी एक नया प्रावधान.
- गंभीर चोट के कारण लगभग निष्क्रिय स्थिति में जाने अथवा स्थाई रूप से विकलांग होने पर अब और अधिक कठोर दंड दिये जाएंगे.
विक्टिम-सेंट्रिक
क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में विक्टिम-सेंट्रिक सुधार के 3 प्रमुख फीचर्स होते हैं:
- पार्टिसिपेशन का अधिकार (विक्टिम को अपनी बात रखने का मौका, BNSS 360)
- इनफार्मेशन का अधिकार (BNSS खंड 173, 193 और 230)
- नुकसान के लिए क्षतिपूर्ति का अधिकार
यह तीनों फीचर्स नए कानूनों में सुनिश्चित किये गए हैं. इसके अलावा जीरो FIR दर्ज करने की प्रथा को संस्थागत बना दिया गया है (BNSS 173). वहींFIR कहीं भी दर्ज कर सकते हैं, भले ही अपराध किसी भी इलाके में हुआ हो.
विक्टिम के सूचना के अधिकार
- विक्टिम को FIR की एक प्रति निःशुल्क प्राप्त करने का अधिकार.
- विक्टिम को 90 दिनों के भीतर जांच में प्रगति के बारे में सूचित करना.
- पीड़ितों को पुलिस रिपोर्ट, FIR, गवाह के बयान आदि के अनिवार्य प्रावधान के माध्यम से उनके मुकदमे के ब्योरे की जानकारी का एक महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है.
- जांच और मुकदमे के विभिन्न चरणों में पीड़ितों को जानकारी प्रदान करने के लिए उपबंध शामिल किए गए हैं.
देशद्रोह
- राजद्रोह – सेडीशन को पूर्णतः हटा दिया गया है.
- भारतीय न्याय संहिता धारा 152 में अपराध :अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करना है. भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है.
- IPC धारा 124क में सरकार के खिलाफ की बात की गयी है, मगर भारतीय न्याय संहिता धारा 152 भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता के बारे में हैं.
- IPC में आशय या प्रयोजन की बात नहीं थी, लेकिन नए कानून में देशद्रोह के डिफिनेशन में आशय की बात है, जिसमें अभिव्यक्ति स्वतंत्रता हेतु सेफ़गार्ड प्रोवाइड करता है.
- अब घृणा, अवमानना जैसे शब्दों को हटाकर सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववादी गतिविधियां जैसे शब्द सम्मिलित किये गए हैं.
भारतीय न्याय संहिता धारा 152:
जो कोई, जानबूझकर या प्रयोजन पूर्वक, बोले गए या लिखे गए शब्दों से, या संकेतों द्वारा, या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा, या इलेक्ट्रॉनिक संचार द्वारा या वित्तीय साधनों के उपयोग से, या अन्यथा, अलगाव या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियों को उत्तेजित करता है या उत्तेजित करने का प्रयास करता है, या अलगाववादी गतिविधियों की भावनाओं को प्रोत्साहित करता है या भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालता है; या ऐसे किसी भी कार्य में शामिल होता है या करता है तो उसे आजीवन कारावास या कारावास जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, से दंडित किया जाएगा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के प्रमुख फीचर
टाइम-लाइन :
- आपराधिक कार्यवाही शुरू करने, गिरफ्तारी, जांच, आरोप पत्र, मजिस्ट्रेट के समक्ष कार्यवाही, कोग्निज़ंस, चार्जेज, प्ली बारगेनिंग, सहायक लोक अभियोजक की नियुक्ति, ट्रायल, जमानत, जजमेंट और सजा, दया याचिका आदि के लिए एक समय-सीमा निर्धारित की गई है.
- 35 सेक्शन में टाइमलाइन जोड़ी गई है, जिससे स्पीडी डिलीवरी ऑफ़ जस्टिस संभव होगी.
- BNSS में, इलेक्ट्रॉनिक कम्युनिकेशन के माध्यम से शिकायत देने वाले व्यक्ति द्वारा तीन दिनों के भीतर FIR को रिकॉर्ड पर लिया जाना होगा.
- यौन उत्पीड़न के पीड़ित की चिकित्सा जांच रिपोर्ट मेडिकल एग्जामिनर द्वारा 7 दिनों के भीतर जांच अधिकारी को फॉरवर्ड की जाएगी.
- पीड़ितों/मुखबिरों को जांच की स्थिति के बारे में सूचना 90 दिनों के भीतर दी जाएगी.
- आरोप तय करने का काम सक्षम मजिस्ट्रेट द्वारा आरोप की पहली सुनवाई से 60 दिनों के भीतर किया जाना होगा.
- मुकदमे में तेजी लाने के लिए, अदालत द्वारा घोषित अपराधियों के खिलाफ अनुपस्थिति में मुकदमा शुरू करना आरोप तय होने से 90 दिनों के भीतर होगा.
- किसी भी आपराधिक न्यायालय में मुकदमे की समाप्ति के बाद निर्णय की घोषणा 45 दिनों से अधिक नहीं होगी.
- सत्र न्यायालय द्वारा बरी करने या दोषसिद्धि का निर्णय बहस पूरी होने से 30 दिनों के भीतर होगा, जिसे लिखित में मेंशनड कारणों के लिए 45 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है.
महिलाओं के प्रति अपराध
- e-FIR के माध्यम से महिलाओं के प्रति अपराधों की रिपोर्टिंग के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण पेश करता है. संवेदनशील अपराधों की त्वरित रिपोर्टिंग में सहायता करता है.
- नए विधेयक उन संज्ञेय अपराधों के लिए e-FIR की भी अनुमति देते हैं जहां आरोपी अज्ञात होता है.
- इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पीड़ितों को अपराध की रिपोर्ट करने के लिए एक विवेकशील अवसर प्रदान करता है.
जांच की प्रगति: शिकायतकर्ता को सूचना और इलेक्ट्रॉनिक पारदर्शिता
पारंपरिक प्रचलन से हटकर पुलिस के लिए सख्ती से 90 दिनों के भीतर जांच की प्रगति के संबंध में शिकायतकर्ता बताना जरूरी है.
समय पर ट्रायल: स्थगन और समयसीमा का मार्गदर्शन
- न्यायिक क्षेत्र में दो चीज़ों पर बल दिया जा रहा है. सुनवाई में तेजी लाना और अनुचित स्थगन पर अंकुश लगाना.
- धारा 392 (1) में 45 दिनों के भीतर निर्णय की बात करते हुए मुकदमे को खत्म करने के लिए बेहतर ढंग से एक समयसीमा निर्धारित की गई है.
- न्याय में विलंब का अर्थ न्याय से वंचित होना है.
टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल को बढ़ाना: दुनिया की सबसे आधुनिक न्याय प्रक्रिया बनाना
- क्राइम सीन – इन्वेस्टीगेशन – ट्रायल तक सभी चरणों में टेक्नोलॉजी का उपयोग
- पुलिस जांच में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी,
- सबूतों की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा विक्टिम और आरोपियों दोनों के अधिकारों की रक्षा होगी.
- यह क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को आधुनिक बनाने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है.
- FIR से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट तथा जजमेंट सभी डिजिटाइज्ड हो जायेंगे.
- सभी पुलिस थानों और न्यायालयों द्वारा एक रजिस्टर द्वारा ई-मेल एड्रेस, फोन नंबर अथवा ऐसा कोई अन्य विवरण रखा जाएगा.
एविडेंस, तलाशी व जब्ती में रिकॉर्डिंग
- ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य
- ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग ‘अविलंब’ मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत की जाए.
- फोरेंसिक साक्ष्य एकत्र करने की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की आवश्यकता.
- पुलिस जांच के दौरान दिए गए किसी भी बयान की ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग का विकल्प.
फोरेंसिक
- 7 वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले सभी अपराधों में ‘फोरेंसिक एक्सपर्ट’ द्वारा क्राइम सीन पर फोरेंसिक एविडेंस कलेक्शन अनिवार्य.
- इससे क्वालिटी ऑफ इन्वेस्टीगेशन में सुधार होगा और इन्वेस्टीगेशन साइंटिफिक पद्धति पर आधारित होगी.
- 100% कन्विक्शन रेट का लक्ष्य.
- सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में फोरेंसिक के इस्तेमाल को जरूरी.
- राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में जरुरी इंफ्रास्ट्रक्चर 5 वर्ष के भीतर तैयार की जानी है.
पहल
- नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी (NFSU) की स्थापना पर फोकस
- NFSU के कुल 7 परिसर और 2 ट्रेनिंग अकादमी (गांधीनगर, दिल्ली, गोवा, त्रिपुरा, गुवाहाटी, भोपाल, धारवाड़)
- CFSL पुणे एवं भोपाल में नेशनल फोरेंसिक साइंस अकादमी की शुरुआत.
- चंडीगढ़ में अत्याधुनिक DNA विश्लेषण सुविधा का उद्घाटन.
सर्च और जब्ती
- पुलिस द्वारा सर्च और जब्ती की कार्यवाही करने के लिए भी टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाएगा.
- पुलिस द्वारा सर्च करने की पूरी प्रक्रिया अथवा किसी संपत्ति का अधिगृहण करने में इलेक्ट्रानिक डिवाइस के माध्यम से वीडियोग्राफी.
- पुलिस द्वारा ऐसी रिकार्डिंग बिना किसी विलंब के संबंधित मजिस्ट्रेट को भेजी जाएगी.
पुलिस की जवाबदेही
गिरफ्तार व्यक्तियों की सूचना प्रदर्शित करना: राज्य सरकार को एक पुलिस अधिकारी को नामित करने के लिए अतिरिक्त दायित्व दिया है जो सभी गिरफ्तारियों और गिरफ्तार लोगों के संबंध में जानकारी एकत्र करने के लिए जिम्मेदार होगा. ऐसी जानकारी को प्रत्येक पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय में प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना भी आवश्यक है.
प्रक्रियाओं को सरल बनाना
- अब छोटे-मोटे मामलों में समरी ट्रायल द्वारा तेजी लाई जाएगी.
- कम गंभीर मामलों, चोरी, चोरी की गई संपत्ति प्राप्त करना अथवा रखना, घर में अनधिकृत प्रवेश, शांति भंग करने, आपराधिक धमकी आदि जैसे मामलों, के लिए समरी ट्रायल को अनिवार्य बनाया गया है.
- उन मामलों में जहां सजा 3 वर्ष (पूर्व में 2 वर्ष) तक है, मजिस्ट्रेट लिखित रूप में दर्ज कारणों के अंतर्गत ऐसे मामलों में समरी ट्रायल कर सकता है.
- सिविल सर्वेन्ट्स के विरुद्ध प्रॉसिक्यूशन चलाने के लिए सहमति या असहमति पर सक्षम अधिकारी 120 दिनों के अंदर निर्णय लेगा, यदि ऐसा न हो, तो यह मान लिया जाएगा कि अनुमति प्रदान हो गई है.
- सिविल सर्वेन्ट्स, एक्सपर्ट्स, पुलिस अधिकारियों के साक्ष्य उसका प्रभार धारण करने वाला व्यक्ति ऐसे दस्तावेज या रिपोर्ट पर टेस्टीमनी दे सकेगा.
अंडर ट्रायल कैदी
- कोई व्यक्ति पहली बार अपराधी है, और एक तिहाई कारवास काट चूका है, तो उसे अदालत द्वारा जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा.
- जहां विचाराधीन कैदी आधी या एक तिहाई अवधि पूरी कर लेता है, जेल अधीक्षक अदालत को तुरंत लिखित में आवेदन दे.
- विचाराधीन कैदी को आजीवन कारावास या मौत की सजा में रिहाई उपलब्ध नहीं होगी.
नई विटनेस प्रोटेक्शन स्कीम
राज्य सरकार राज्य हेतु एक एविडेंस प्रोटेक्शन स्कीम तैयार करेगी और नोटिफाईड भी की जाएगी .
घोषित अपराधियों की संपत्ति की कुर्की
- 10 वर्ष अथवा अधिक की सजा अथवा आजीवन कारावास अथवा मृत्युदंड की सजा वाले मामलों में दोषी को घोषित अपराधी (प्रोक्लेम्डल ऑफेंडर) घोषित किया जा सकता है.
- घोषित अपराधियों के मामलों में, भारत से बाहर की संपत्ति की कुर्की और जब्ती के लिए एक नया प्रावधान किया गया है.
- पहले केवल 19 अपराधों में ही प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर घोषित हो सकते थे, अब इसमें 120 अपराधों को दायरे में लाया गया है. जिसमें बलात्कार के अपराध को शामिल किया गया है, जो पहले शामिल नहीं था.
संपत्तियों का निपटान
- देश के पुलिस स्टेशनों में बड़ी संख्या में केस संपत्तियां पड़ी रहती हैं.
- जांच के दौरान, अदालत या मजिस्ट्रेट द्वारा संपत्ति का विवरण तैयार करने और फोटोग्राफ/वीडियोग्राफी के बाद भी ऐसी संपत्तियों के त्वरित निपटान का प्रावधान किया गया है.
- फोटो या वीडियोग्राफी किसी भी जांच, परीक्षण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में उपयोग किया जा सकेगा.
- फोटो खींचने/वीडियोग्राफी करने के 30 दिनों के भीतर, संपत्ति के निपटान, डिस्ट्रक्शन, जब्ती या वितरण का आदेश देगा.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम- मेजर परिवर्तन
भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 में दस्तावेजों की परिभाषा का विस्तार करते हुए इसमें इलेक्ट्रानिक या डिजिटल रिकार्ड, ईमेल, सर्वर लॉग्स, कंप्यूटर पर उपलब्ध दस्तावेज, स्मार्टफोन या लैपटॉप के मैसेजेज, वेबसाइट, लोकेशनल साक्ष्य. इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड ‘दस्तावेज’ की परिभाषा में शामिल हैं. वहीं इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्राप्त बयान ‘साक्ष्य’ की परिभाषा में शामिल हैं. इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड को प्राथमिक साक्ष्य के रूप में मानने के लिए और अधिक मानक जोड़े गए, जिसमें इसकी उचित कस्टडी-स्टोरेज-ट्रांसमिशन-ब्रॉडकास्ट पर जोर दिया गया है.
दस्तावेजों की जांच करने के लिए मौखिक और लिखित स्वीकारोक्ति और एक कुशल व्यक्ति के साक्ष्य को शामिल करने के लिए और अधिक प्रकार के माध्यमिक साक्ष्य जोड़े गए, जिनकी जांच अदालत द्वारा आसानी से नहीं की जा सकती है. साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड की कानूनी स्वीकार्यता, वैधता और प्रवर्तनीयता स्थापित की गई.