नई दिल्ली: जबरन धर्म परिवर्तन को लेकर समय-समय पर कानून बनाकर इस पर लगाम लगाने की मांग की जाती रही है। इस बीच, सोमवार को शीर्ष अदालत ने अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए जबरन धर्न परिवर्तन को लेकर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि यह एक गंभीर मुद्दा है। इतना ही नहीं ये संविधान के खिलाफ भी है। दरअसल, वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपनी याचिका में धोखाधड़ी और डरा-धमकाकर होने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की मांग की है। याचिका में कहा है कि अगर इन पर रोक नहीं लगाई गई, तो जल्द ही भारत में हिंदू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। मामले में सुनवाई के दौरान केंद्र ने अदालत को बताया कि वह इस तरह के माध्यम से धर्म परिवर्तन पर राज्यों से जानकारी एकत्र कर रहा है।
जस्टिस एम आर शाह और सी टी रविकुमार की पीठ के समक्ष सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करने के लिए समय मांगा। उन्होंने कहा कि वैधानिक शासन यह निर्धारित करेगा कि विश्वास में कुछ बदलाव के कारण कोई व्यक्ति परिवर्तित हो रहा है या नहीं।
इस पर पीठ ने कहा कि ‘इसे विरोध के रूप में न लें। यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। आखिरकार यह हमारे संविधान के खिलाफ है। जब हर कोई भारत में रहता है, तो उन्हें भारत की संस्कृति के अनुसार कार्य करना पड़ता है।’ शीर्ष अदालत अब इस मामले की सुनवाई 12 दिसंबर को करेगी।
मृतक अंग प्रत्यारोपण के नियमों में एकरूपता की कमी की जांच करे केंद्र
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार यानी आज सुनवाई करते हुए केंद्र से उस याचिका पर विचार करने को कहा जिसमें सभी राज्यों में मृतक अंगों के प्रत्यारोपण से संबंधित नियमों में एकरूपता की मांग की गई है। गिफ्ट ऑफ लाइफ एडवेंचर फाउंडेशन नामक संस्था ने यह याचिका दायर की है। याचिका में मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के विनियमन और निगरानी या 2014 के केंद्रीय नियमों के अनुरूप विभिन्न राज्यों में नियमों में एकरूपता लाने के लिए राज्य सरकारों को उचित दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई थी। इस याचिका पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने सुनवाई करके हुए केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण नियम, 2014 के साथ राज्यों में मृतक अंग प्रत्यारोपण के नियमों में एकरूपता की कमी की जांच तेजी से करे।
EWS आरक्षण पर केंद्र का फैसला बरकरार रखने के आदेश में डीएमके की पुनर्विचार याचिका
डीएमके ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर केंद्र का फैसला बरकरार रखने वाले सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर सोमवार को शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दाखिल की है। डीएमके ने अपनी पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की भी मांग की है।
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से संविधान के 103वें संशोधन अधिनियम की वैधता को बरकरार रखा था। यह शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस आरक्षण प्रदान करता है। ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण देने वाले संशोधन को 7 नवंबर को बरकरार रखा गया था। डीएमके ने दलील दी कि इस फैसले का असर 133 करोड़ भारतीयों पर होगा।
ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल स्थापित करने पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सभी 25 उच्च न्यायालय रजिस्ट्रियों को ऑनलाइन आरटीआई (सूचना का अधिकार) पोर्टल स्थापित करने की मांग करने वाली याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए तीन सप्ताह का समय दिया है। मामले में मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने सुनवाई की। इस दौरान याचिकाकर्ता एनजीओ प्रवासी लीगल सेल द्वारा सूचित किया गया कि 25 उच्च न्यायालयों में से केवल नौ ने ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल स्थापित करने की मांग वाली याचिका पर अपना जवाब दाखिल किया है।
एनजीओ ने अपनी याचिका में कहा है कि ऑनलाइन सुविधाओं की कमी से लोगों को परेशानी हो रही है क्योंकि उन्हें आरटीआई अधिनियम के तहत सूचना मांगने के लिए आवेदन दाखिल करने के लिए शारीरिक रूप से उच्च न्यायालयों में आना पड़ता है। इस पर पीठ ने कहा कि जिन उच्च न्यायालयों ने ऑनलाइन आरटीआई पोर्टल्स की प्रस्तावित स्थापना पर अपना जवाब दाखिल नहीं किया है, वे तीन सप्ताह की अवधि के भीतर सकारात्मक रूप से ऐसा करेंगे।