क्या हिमाचल में गुजरात, उत्तराखंड का फॉर्मूला न अपनाकर बीजेपी ने गलती कर दी?

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नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 40 सीटें जीतकर सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही. बीजेपी ने अपने चुनाव अभियान में नारा दिया था, ‘सरकार नहीं रिवाज बदलेंगे’ लेकिन राज्य की जनता ने रिवाज नहीं सरकार ही बदल दी. बीजेपी को महज 25 सीटों से संतोष करना पड़ा. जयराम ठाकुर सरकार के 10 में से आठ मंत्री चुनाव हार गए जबकि गुजरात में पार्टी ऐतिहासिक जीत के साथ अपनी सत्ता को बचाए रखने में सफल रही है. सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी ने उत्तराखंड और गुजरात की तरह हिमाचल में चुनाव से पहले सीएम बदलने का फॉर्मूला न अपनाकर क्या सियासी गलती कर दी है?

गौरतलब है कि बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से गुजरात, उत्तराखंड, त्रिपुरा और कर्नाटक सहित पांच मुख्यमंत्रियों को बदला. इस तरह बीजेपी ने विधानसभा चुनाव में पुराने सीएम को हटाकर एक नए चेहरे के साथ उतरने की अपनी रणनीति अपनाई, जिसका उसे पहले उत्तराखंड में लाभ मिला और अब गुजरात में यह दांव सफल रहा. इस तरह से पांच राज्यों में से दो राज्यों में चुनाव हुए हैं, जहां पर उसे जीत मिली है जबकि बाकी तीन राज्यों में चुनाव होने हैं.

उत्तराखंड में बीजेपी इस फॉर्मूले के जरिए बीते दो दशक से हर पांच साल के सत्ता परिवर्तन के चले आ रहे ट्रेंड को भी तोड़ने में कामयाब रही. वहीं, असम में बीजेपी मौजूदा सीएम के चेहरे पर चुनाव लड़ने के बजाय सामूहिक नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी. यह रणनीति भी सफल रही थी और सत्ता में आने के बाद बीजेपी ने मौजूदा सीएम सर्बानंद सोनोवाल को रिपीट करने के बजाय हेमंत बिस्वा सरमा को कुर्सी सौंपी.

हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर की अगुवाई में बीजेपी चुनावी मैदान में उतरी थी, लेकिन सूबे में साढ़े तीन दशक से चले आ रहे सत्ता परिवर्तन के रिवाज को नहीं बदल पाई. हालांकि, बीजेपी जब राज्यों में अपने सीएम को बदल रही थी तब जयराम ठाकुर के भी बदलने के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन पर अपना भरोसा कायम रखा और वह 2022 के चुनाव में एक फिर से उन्हीं के अगुवाई में मैदान में उतरी.

साल 2020 में हिमाचल में हुए उपचुनाव के दौरान भी ये बात साफ हो गई थी कि प्रदेश में बीजेपी नेतृत्व की कमी से जूझ रही है. माना जाता है कि सीएम जयराम ठाकुर पांच साल तक सत्ता में रहने के बावजूद प्रेम कुमार धूमल और शांता कुमार की तरह लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल नहीं कर सके. जयराम ठाकुर 2017 में मुख्यमंत्री तब बने थे, जब बीजेपी के सीएम कैंडिडेट रहे प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए थे.

एजेंडा आजतक में बोले जेपी नड्डा

तो क्या हिमाचल में सीएम न बदलने के चलते बीजेपी की हार हुई? एजेंडा आजतक 2022 में जब यही सवाल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जयराम ठाकुर ने बहुत अच्छा काम किया है, लेकिन जनादेश का हम स्वागत करते हैं. हिमाचल में अभी तक के चुनाव में जीतने और हारने वाली पार्टी के बीच स्विंग वोटों का छह फीसदी अंतर होता था. इस बार एक फीसदी वोट का अंतर है. कांग्रेस का वोट बीजेपी से महज एक फीसदी ज्यादा है. इससे साफ है कि सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर नहीं थी और हिमाचल की जनता जयराम सरकार के कामकाज से खुश थी. ऐसे में हार के कारण हम पता लगा रहे हैं.

गुजरात में मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों के बदलने के फॉर्मूले पर जेपी नड्डा ने कहा कि गुजरात में हम 27 सालों से सत्ता में हैं, उसे बीजेपी की प्रयोगशाला कहा जाता है. वहां पर नया प्रयोग करते रहते हैं. गुजरात में भी मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों को हटाकर नए सीएम और मंत्री बनाए गए हैं, तो ऐसा नहीं था कि वहां पर सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है. राज्य में इसे एक प्रयोग की तरह किया था, जो सफल रहा. इसे आगे किसी और भी राज्य में लागू कर सकते हैं.

गुजरात में 1 साल पहले हुआ था बड़ा उलटफेर 

बता दें कि गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री सहित सभी मंत्रियों को हटाकर उनकी जगह नए चेहरों को मौका दिया था. विजय रुपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया गया था और नितिन पटेल जैसे नेताओं की भी छुट्टी कर दी गई थी. माना जा रहा था कि गुजरात में बीजेपी सत्ता विरोधी लहर को मात देने के लिए बीजेपी ने यह दांव चला था. विधानसभा चुनाव में बीजेपी नए चेहरे के साथ उतरी थी और अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा सीटों के साथ सत्ता में वापसी की है.

झारखंड विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार के साथ ही मुख्यमंत्री रघुबर दास के स्वयं अपनी सीट गंवाने के बाद पार्टी को नेतृत्व परिवर्तन करने की जरुरत का एहसास हुआ. इसके बाद कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलते हुए भाजपा ने लिंगायत समुदाय से आने वाले बीएस येदियुरप्पा की जगह एक अन्य लिंगायत नेता बसवराज एस बोम्मई को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया था. बीजेपी ने उत्तराखंड में दो ठाकुर मुख्यमंत्रियों की जगह एक अन्य ठाकुर नेता को नियुक्त किया. ऐसे ही विजय रूपाणी को हटाकर भूपेंद्र पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया था.

बीजेपी ने 2019 के बाद पांच मुख्यमंत्री बदले

उत्तराखंड में चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बदलने का दांव सफल रहने के मद्देनजर बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने त्रिपुरा में भी इसी तरह के बदलाव का विकल्प चुना, जहां अगले साल की शुरुआत में चुनाव होने हैं. बीजेपी ने 2019 के बाद से गुजरात और कर्नाटक सहित पांच मुख्यमंत्रियों को बदला है, जिसमें से दो राज्यों के चुनाव में यह रणनीति सफल रही. हिमाचल में बीजेपी जयराम ठाकुर की अगुवाई में ही चुनावी मैदान में उतरी थी, जो सत्ता परिवर्तन के रिवाज को नहीं तोड़ सके. ऐसे में सवाल उठता है कि गुजरात और उत्तराखंड के फॉर्मूले को हिमाचल में न अपनाकर क्या सियासी गलती की है?

Source : “आज तक”  

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