जान से खिलवाड़ का ज़रा भी नहीं मलाल ! 12वीं पास चला रहा था अस्पताल, दो बार क्लीनिक का नाम भी बदला…

क्राइम राज्यों से खबर

गोरखपुर: वह पेशे से तो चिकित्सक है, लेकिन पढ़ाई 12वीं तक ही है। मरीजों का इलाज ही नहीं ऑपरेशन भी करता था। जिसके नाम से अस्पताल का पंजीकरण कराया था, वह दिल्ली में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है। अस्पताल के पैनल में जिन नौ डॉक्टरों के नाम हैं, वे कभी अस्पताल में आए ही नहीं। दूसरे जिलों में प्रैक्टिस करते हैं। सत्यम हॉस्पिटल और उसके संचालक रंजीत निषाद के बारे में इस खौफनाक सच का खुलासा पुलिस ने शनिवार को किया। गोरखपुर में एक 12वीं पास युवक डॉक्टर बनकर मरीजों का दवा इलाज कर रहा था। इतना ही नहीं मरीजों की स्थिति गंभीर होने पर वह ऑपरेशन भी कर देता था। इस कारनामे के लिए उसने शहर में सत्यम के नाम से अपना हास्पिटल भी खोल रखा था।  एसएसपी डॉ. गौरव ग्रोवर ने पुलिस लाइंस सभागार में पत्रकारों को बताया कि गोरखपुर मे सत्यम हॉस्पिटल कई सालों से अवैध तरीके से चल रहा था। अस्पताल का संचालक रंजीत निषाद बिना किसी वैध डिग्री के डॉक्टरों का नाम सूची में अंकित कर, पैड पर मरीजों के लिए दवा लिखता था। रंजीत की लापरवाही से तीन जनवरी को गर्भवती की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। मामले में गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज कर इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट के तहत रंजीत निषाद को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया गया है।

उन्होंने बताया कि गर्भवती की मौत के बाद पुलिस ने मामले की जांच शुरू की तो ये जानकारियां मिलीं हैं। मामले में स्वास्थ्य विभाग के कुछ अधिकारियों और कर्मियों की भी भूमिका संदिग्ध पाई गई है। पता चला है कि बिना जांच के ही अधिकारियों ने हॉस्पिटल का पंजीकरण कर लिया था। ऐसे लोगों की सूची तैयार की जा रही है। एसएसपी ने ऐसे लोगों के खिलाफ कानूनी और विभागीय कार्रवाई के लिए सीएमओ को पत्र भी लिखा है।

दो बार हॉस्पिटल का नाम बदला, पहले चिराग, फिर किया प्रियांशु

एसएसपी ने बताया कि रंजीत निषाद हॉस्पिटल का नाम बदल-बदलकर चलाता था। सत्यम से पहले यह हॉस्पिटल चिराग हॉस्पिटल और प्रियांशु हॉस्पिटल के नाम से भी चल रहा था। दोनों नामों पर हॉस्पिटल को स्वास्थ्य विभाग ने सील कर दिया था। इस बार उसने नाम बदलकर सत्यम कर लिया था। अस्पताल का पंजीकरण डॉ. सुनील कुमार सरोज (एमबीबीएस) की डिग्री पर कराया था। जिस डाक्टर के नाम पर हॉस्पिटल पंजीकृत था, वह हॉस्पिटल में मरीजों को नहीं देखता था। न ही वह सेवा देता था। बताया जा रहा है कि वह दिल्ली में रहकर एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है। हॉस्पिटल के पैड पर नौ नाम डॉक्टरों के ऐसे मिले हैं, जो अन्य जिलों में रहते हैं और वहीं प्रैक्टिस करते हैं।

बिचौलियों ने कर्मियों से मिलकर करवा दिया था पंजीकरण

एसएसपी ने बताया कि पूछताछ में जानकारी मिली है कि अस्पताल के पंजीकरण के लिए रंजीत ने जिला अस्पताल के बिचौलियों की मदद ली थी। बिचौलियों ने स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों की मदद से बिना किसी जांच पड़ताल के अस्पताल को पंजीकृत करा दिया था। इस संबंध में सीएमओ को पत्र लिखकर इस कदाचार में शामिल कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पत्र लिखा गया है।

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