उज्जैन: भारत का संविधान कहता है कि 100 गुनाहगार छूट जाए लेकिन एक बेगुनाहगार को सजा नहीं मिलनी चाहिए. कुछ ऐसा ही फैसला इंदौर हाईकोर्ट ने एक आदेश में सुनाया है. हाईकोर्ट ने साजिश रचकर महिला को नौकरी से हटाने और उसके खिलाफ कूटरचित दस्तावेज के जरिए नौकरी पाने का झूठा केस दर्ज कराने के एक मामले में अहम फैसला सुनाया है.
दरअसल उज्जैन जिले की एक महिला को दुधमुंही बच्ची के साथ झूठे केस में करीब 17 महीने जेल में गुजारने पड़े थे. लेकिन अब कोर्ट में सभी आरोप झूठे साबित हो गए हैं. अब हाईकोर्ट ने महिला पर झूठे केस के चलते जेल में हुई परेशानी के एवज में सरकार को एक महीने के भीतर पांच लाख रुपए का हर्जाना और ससम्मान नौकरी पर वापस रखने के आदेश दिए है. कोर्ट ने महिला के खिलाफ षड्यंत्र करने वाले अफसरों के खिलाफ भी जांच के आदेश दिए हैं.
10वीं-12वीं की मार्कशीट में गड़बड़ी का था आरोप
वहीं हाईकोर्ट एडवोकेट सीमा शर्मा के मुताबिक मामला उज्जैन जिले के खाचरौद बालक छात्रावास की असिस्टेंट वार्डन पुष्पा चौहान से जुड़ा है. 2007 में सर्व शिक्षा अभियान के तहत पुष्पा सहित 10 लोगों का चयन असिस्टेंट वार्डन के लिए किया गया था. नियुक्ति के समय पुष्पा ने अपनी मार्कशीट और अन्य दस्तावेज पेश किए गए थे. कलेक्टर सहित कमेटी ने इनके वेरिफिकेशन के बाद पुष्पा को नौकरी संविदा नियुक्ति में उन्हें लगातार एक्सटेंशन भी मिला है. हालांकि 27 फरवरी 2018 को असिस्टेंट प्रोजेक्ट को-ऑर्डिनेटर मनीषा मिश्रा ने पुष्पा सहित सभी 10 असिस्टेंट वार्डन को अपने मूल दस्तावेज दोबारा पेश करने को कहा.
उसके बाद बाकी 9 के कागजात तो वापस कर दिए गए लेकिन पुष्पा की 10वीं और 12वीं की मार्कशीट में उम्र के उल्लेख में गड़बड़ी की बात कही गई थी. जिसके चलते कूटरचित दस्तावेज से नौकरी हासिल करने का आरोप लगाते हुए पुष्पा को नौकरी से हटा कर उसके खिलाफ उज्जैन के माधव नगर थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई थी, जिसके बाद 6 सितंबर 2018 को पुष्पा की गिरफ्तारी हुई.
पुष्पा ने बच्ची के साथ जेल में बिताए 17 माह
गौरतलब है कि गिरफ्तारी के बाद पुष्पा को अपनी दुधमुंही बच्ची के साथ एक साल पांच माह जेल में रहना पड़ा. जिसके बाद निचली अदालत में सभी आरोप झूठे साबित हुए और उन्हें बरी कर दिया गया. इसके बाद पुष्पा ने फिर से नौकरी पाने के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी.