विधानसभा में 2016 से पहले की भर्ती को लेकर असमंजस ? महाधिवक्ता ने विधिक राय देने से किया इंकार !

खबर उत्तराखंड

देहरादून: उत्तराखंड सरकार के महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर ने विधानसभा में वर्ष 2001 से 2015 के मध्य हुई तदर्थ नियुक्तियों को नियमित किए जाने की वैधता पर विधिक राय देने से फिलहाल असमर्थता जाहिर कर दी है। इसके साथ ही इन पुरानी नियुक्तियों को लेकर भी असमंजस की स्थिति बन गई है। इस तरह उत्तराखंड विधानसभा में 2016 से 2021 के दौरान बैकडोर भर्ती पर लगे कर्मचारियों को जिस सहजता के साथ बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, ठीक उसी प्रक्रिया से 2016 से पूर्व भर्ती हुए कर्मचारियों को मामले में वैसी सहजता नहीं दिखाई दे रही है। इससे जुड़े सवाल पर स्पीकर ऋतु खंडूड़ी भूषण का एक ही जवाब है नो कमेंट।

लेकिन जो बातें सोशल मीडिया के माध्यम से अब बाहर आ रही हैं, उनके मुताबिक, वर्ष 2016 से पूर्व की नियुक्तियों के बारे में महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर से जो उन्होंने विधिक राय मांगी थी, वह उन्हें नहीं मिल पाई है। महाधिवक्ता ने उन्हें पत्र भेजकर कह दिया है कि विधानसभा से निकाले गए 228 कर्मचारियों से जुड़ा मामला चूंकि उच्च न्यायालय की एकल पीठ में विचाराधीन है, इसलिए वह कोई राय देने की स्थिति में नहीं है। उन्होंने स्पीकर को यह सलाह भी दी है कि उन्हें एकल पीठ के फैसले का इंतजार कर लेना चाहिए।

महाधिवक्ता ने नौ जनवरी को ही भेज दी थी अपनी राय

गौर करने वाली बात यह है कि महाधिवक्ता ने नौ जनवरी को ही विधानसभा अध्यक्ष को अपनी राय भेज दी थी। लेकिन जवाब प्राप्त होने के बाद यह बात तेजी से चर्चा का विषय बनी कि विधानसभा अध्यक्ष ने सरकार से विधिक राय मांगी है। सवाल यह है कि क्या विधानसभा ने महाधिवक्ता से विधिक राय के लिए दोबारा लिखा था? इससे जुड़े मसले पर जब स्पीकर से पूछा गया तो उन्होंने कोई भी प्रतिक्रिया देने से साफ मना कर दिया।

विधिक राय को लेकर क्या सरकार अंधेरे में थी?

यह भी प्रश्न है कि विधिक राय को लेकर क्या सरकार भी अंधेरे में थी? क्या शासन इस बात से बेखबर था कि महाधिवक्ता स्पीकर को आठ जनवरी को ही अपना जवाब दे चुके हैं? ये प्रश्न इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि मुख्यमंत्री की अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने महाधिवक्ता को 19 जनवरी को पत्र लिखा कि वह विधानसभा सचिवालय में हुई तदर्थ नियुक्तियों के नियमितीकरण की वैधता पर अपना परामर्श दें।

 

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