पटना: बिहार के पूर्व सांसद और बाहुबली आनंद मोहन सिंह हत्या के एक मामले में फिलहाल उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. उन्हें एक जिलाधिकारी की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया है. इस जिलाधिकारी का नाम जी. कृष्णैया था. जब उनकी हत्या हुई थी, तब वह गोपालगंज के डीएम थे. 35 वर्षीय कृष्णैया की हत्या कैसे हुई? इस सवाल का जवाब जानने के लिए 4 दिसंबर 1994 की तारीख में चलना होगा. उस दिन उत्तरी बिहार का एक कुख्यात गैंगस्टर छोटन शुक्ला की हत्या कर दी गई थी. हत्या से मुजफ्फरपुर इलाके में तनाव फैल गया था. लोग सरकार और पुलिस से खासे नाराज थे.
5 दिसंबर को हजारों लोग छोटन शुक्ला का शव सड़क पर रखकर प्रदर्शन कर रहे थे. उसी समय गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैया एक विशेष बैठक में शामिल होने के बाद अपने गोपालगंज लौट रहे थे. वह अपनी लालबत्ती वाली सरकारी कार में सवार थे. उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि आगे हाइवे पर हंगामा हो रहा है. उनकी कार जैसे ही प्रदर्शनकारियों के करीब पहुंची तो, सरकारी कार देखकर लोग भड़क गए. उन्होंने कार पर पथराव शुरू कर दिया.
जी. कृष्णैया भीड़ को यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि वो गोपालगंज के डीएम हैं, मुजफ्फरपुर के नहीं, लेकिन किसी ने उनकी नहीं सुनी. भीड़ ने उन्हें कार से बाहर खींच लिया और पीट-पीटकर उन्हें मार डाला. इस दौरान किसी ने किसी ने गोली भी मार दी थी. जी. कृष्णैया की इस दर्दनाक हत्या ने बिहार ही नहीं, पूरे देश में सनसनी फैला दी थी. आरोप था कि डीएम की हत्या करने वाली उस भीड़ को कुख्यात बाहुबली आनंद मोहन ने ही उकसाया था. आनंद मोहन सिंह को 2007 में फांसी की सजा सुनाई गई. 2008 में हाईकोर्ट ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था.
मूल रूप से तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले जी. कृष्णैया बिहार कैडर में 1985 बैच के IAS अधिकारी थे. वह दलित समुदाय से आते थे और बेहद साफ सुथरी छवि वाले ईमानदार अफसर थे. वह साल 1994 में ही गोपालगंज के डीएम बने थे. कृष्णैया का जीवन बहुत संघर्षों से गुजरा था. उन्होंने एक कुली के तौर पर काम करना शुरू किया था. इसके बाद कड़ी मेहनत कर वह आईएएस बने थे.
जानते हैं उनके संघर्ष की कहानी…
महबूबनगर के एक भूमिहीन दलित परिवार में कृष्णैया का जन्म हुआ था. उनके पिता कुली थे. उन्होंने परिवार को सपोर्ट करने लिए सबसे पहले अपने पिता के साथ कुली का काम शुरू किया था. हालांकि उन्होंने पढ़ना जारी रखा. इसके बाद उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा. इसके बाद कुछ समय के लिए वह अकैडमिक्स में आ गए. उन्होंने लेक्चरर के तौर पर काम किया. वह यहीं नहीं रुके.
उन्होंने एक क्लर्क के तौर पर भी काम किया लेकिन कृष्णैया में आगे बढ़ने की ललक खत्म नहीं हुई. उन्होंने आईएएस बनने का सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए दिन रात एक कर दिया. वह परिवार चलाने के लिए काम भी करते थे और पढ़ाई भी करते थे. 1985 में उनकी यह मेहनत रंग लाई. वह आईएएस अफसर बन गए. उन्हें बिहार कैडर दिया गया. गरीबों के बीच उनकी बहुत पूछ थी. दरअसल वह हर दिन उनसे मिलते थे और उनकी समस्याएं जानकर उन्हें दूर करने की कोशिश करते थे.
कृष्णैया की पहली पोस्टिंग पश्चिमी चंपारण में हुई थी. इस जिले को डकैतों और अपहरणकर्ताओं का गढ़ माना जाता था. कृष्णैया के साथ काम करने वाले लोग बताते हैं कि स्थानीय जमींदारों ने उनके काम में कई रुकावटें पैदा की थीं, इसके बावजूद उन्होंने भूमि सुधारों पर एक सराहनीय काम किया था. उन्हें 1994 में गोपालगंज का जिलाधिकारी बनाया गया था. इसी साल उनकी हत्या कर दी गई थी.
लेकिन रिहा हो जाएंगे आनंद मोहन
आनंद मोहन अभी उम्रकैद की सजा काट रहे हैं लेकिन पिछले दिनों वह पैरोल पर जेल से बाहर आ गए थे. दरअसल उनके बेटे की सगाई थी. हालांकि नीतीश सरकार ने जेल मॉड्यूल में कुछ ऐसा बदलाव कर दिया है, जिससे वह अब जल्द ही हमेशा के लिए जेल से बाहर आ जाएंगे. आनंद मोहन समेत 27 बंदियों को बिहार सरकार कारा अधिनियम में बदलाव करके जेल से रिहा करने जा रही है. बिहार सरकार ने कारा हस्तक 2012 के नियम 481 आई में संशोधन किया है. इसके तहत ड्यूटी के दौरान सरकारी सेवक की हत्या को अब अपवाद की श्रेणी से हटा दिया गया है. इसके बाद अब 14 साल की सजा काट चुके अपराधियों को उनके अच्छे आरचरण के सकारण जेल से रिहा किया जा सकेगा. कारा अधिनियम में बदलाव करते ही बिहार सरकार ने आनंद मोहन समेत 27 कैदियों की रिहाई करने की अधिसूचना भी जारी कर दी है. आनंद भले ही पैरोल खत्म होने के बाद वापस जेल चले गए हो लेकिन चर्चा है कि वह 27 को जेल से हमेशा के लिए रिहा हो सकते हैं.
IAS एसोसिएशन ने किया विरोध
IAS एसोसिएशन ने ट्वीट कर कहा, आनंद मोहन ने आईएएस जी. कृष्णैया की नृशंस हत्या की थी. ऐसे में यह दुखद है. बिहार सरकार को जल्द से जल्द इस फैसला वापस लेना चाहिए. ऐसा नहीं होता है, तो ये न्याय से वंचित करने के समान है. इस तरह के फैसलों से लोग सेवकों के मनोबल में गिरावट आती है. हम राज्य सरकार से अपील करते हैं कि बिहार सरकार जल्द से जल्द इस पर पुनर्विचार करे.
बीजेपी ने नीतीश सरकार को घेरा
नीतीश सरकार के फैसले का बीजेपी जमकर विरोध कर रही है. पिछले दिनों बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा, आनंद मोहन के बहाने सरकार मानवीय होने का मुखौटा लगाकर जिन 26 अपराधियों को छोड़ने जा रही है वह दुर्दांत हैं और इनमें से 7 तो ऐसे हैं, जिन्हें अभी भी स्थानीय थाने में अपनी हाजिरी दर्ज करानी होगी. सरकार की तरफ से जिन बंदियों को रिहा किया जा रहा है, उनमें से ज्यादातर MY समीकरण में फिट बैठते हैं और उनके बाहुबल का इस्तेमाल सरकार में बैठे लोग आगे चुनाव में करना चाहते हैं.
सुशील मोदी ने नीतीश सरकार के फैसले को असंवैधानिक बताया है. उन्होंने कहा, 2016 में नीतीश सरकार ने जेल मैनुअल में संशोधन कर बलात्कार, आतंकी घटना में हत्या, बलात्कार के दौरान हत्या और ड्यूटी पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या को ऐसे जघन्य अपराध की श्रेणी में रखा था, जिसमें कोई छूट या नरमी नहीं दी जाएगी लेकिन अब सरकार अपने ही इस फैसले से पलट रही है.
साभार – आजतक