लखनऊ: भाजपा ने यूपी निकाय चुनाव में 395 मुसलमान उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उस सोच के अनुरूप माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने पार्टी की हैदराबाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुस्लिम समुदाय के करीब जाने की बात कही थी। भाजपा का दावा है कि वह मुसलमानों के बीच फैलाए गए भ्रम को दूर करने में कामयाब रही है। यही कारण है कि मुस्लिम मतदाताओं के बीच उसकी पहुंच लगातार बढ़ रही है। चूंकि, भाजपा अगले लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही है, यह लक्ष्य मुसलमान मतदाताओं के सहयोग के बिना संभव नहीं हो सकता। यह भी माना जा रहा है कि यदि भाजपा मुसलमानों के एक वर्ग का वोट हासिल करने में सफल रहती है, तो यूपी में नए राजनीतिक समीकरण पैदा होंगे, जो दूरगामी परिणाम पैदा करेंगे। लेकिन क्या ऐसा होगा?
जिस समय भाजपा ज्यादा उम्मीदवारों को टिकट देने पर अपनी पीठ थपथपा रही है, उसी समय उसने कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण समाप्त करने का वादा किया है। अतीक अहमद हत्याकांड को लेकर भी मुस्लिम समुदाय में संकोच की भावना देखी जा रही है। भाजपा के साथ-साथ उसकी सहयोगी संस्थाओं के नेताओं के बयान भी मुसलमानों के मन में उसके लिए संदेह पैदा कर रहे हैं। विपक्षी खेमे के हमलों के कारण यह संदेह और ज्यादा गहरा हो रहा है। ऐसे में क्या केवल मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से मुसलमान उसके करीब आ जाएंगे?
कम हो रही दूरी
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन डॉ. इफ्तेखार अहमद जावेद ने एक समाचार पत्र से बातचीत मे कहा कि सच्चाई यही है कि अब तक विभिन्न दलों के द्वारा मुसलमानों को भाजपा का डर दिखाया जाता था। उन्हें बताया जाता था कि यदि भाजपा सत्ता में आती है, तो वे संकट में पड़ जाएंगे। लेकिन केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की सरकार आए नौ साल बीत चुके हैं। उत्तर प्रदेश में भी योगी आदित्यनाथ की सरकार आए छह साल से ज्यादा समय हो चुका है। इस बीच मुसलमानों ने अनुभव किया है कि भाजपा सरकारों में उनके हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि केंद्र-राज्य की योजनाओं के सबसे बड़े लाभार्थी मुसलमान ही हैं। केवल 20 फीसदी के लगभग आबादी होने के बाद भी मुसलमान केंद्र-राज्य की योजनाओं में 30 से 40 फीसदी तक की हिस्सेदारी प्राप्त कर रहे हैं। इस कदम ने उनके इस विश्वास को मजबूत करने का काम किया है कि भाजपा सरकार उनके साथ धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं कर रही है।
डॉ. इफ्तेखार अहमद जावेद ने कहा कि भारी संख्या में टिकट देकर भाजपा ने उन आलोचकों का मुंह बंद कर दिया है, जो यह कहते थे कि वह उनके वोट तो लेना चाहती है, लेकिन उन्हें सत्ता की भागीदारी नहीं देना चाहती। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे शिक्षा बढ़ेगी, मुसलमानों के बीच फैलाया गया भ्रम दूर होगा और वे अपनी पसंद के अनुसार अपने लिए नेताओं और राजनीतिक दलों का चयन करेंगे।
मुसलमानों में आशंका
फतवा ऑन मोबाइल सर्विस (देवबंद) के चेयरमैन मुफ्ती अरशद फारुकी ने एक समाचार पत्र से कहा कि एक राजनीतिक दल होने के कारण यदि मुसलमान उम्मीदवारों को टिकट देकर भाजपा उनके करीब जाना चाहती है, तो इसमें कोई बुराई नहीं है। मुसलमान भी सत्ताधारी दल के करीब जाकर देश के विकास में अपनी भागीदारी निभाना चाहते हैं। लेकिन पार्टी ने जिन उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, उनकी छवि को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। यदि वे उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय में स्वीकार्य हैं, तो इसे सकारात्मक कदम के रूप में देखा जाना चाहिए।
लेकिन मुफ्ती अरशद फारुकी का मानना है कि मुसलमान केवल भाजपा की उम्मीदवारों की सूची नहीं देख रहा है, बल्कि वह पार्टी की उन नीतियों पर भी दृष्टि लगाए हुए है, जिसके माध्यम से पार्टी देश चलाना चाहती है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम देशों के संगठनों की राय देखकर यही लगता है कि उनके मन में मुसलमानों को लेकर किए जा रहे व्यवहार पर चिंता है। यदि भाजपा अपनी नीतियों में मुसलमान समुदाय के लोगों की सुरक्षा और विकास सुनिश्चित करे, तो मुसलमान भाजपा के करीब जा सकते हैं, लेकिन फिलहाल उन्हें ऐसा होता दिखाई नहीं पड़ रहा है।
बीजेपी ने खेला मुस्लिम कार्ड
उत्तर प्रदेश में होने जा रहे निकाय चुनावों में बीजेपी ने बड़ा प्रयोग करते हुए कुल 395 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. बीजेपी की तरफ से पहली बार इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव खेला गया है. खासतौर पर पार्टी ने महिला उम्मीदवारों को उतारकर बताया है कि वो मुस्लिम महिलाओं के विकास पर काम कर रही है. बीजेपी के इस कदम को 2024 चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें बीजेपी पसमांदा मुस्लिमों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करेगी. यही वजह है कि कुल मुस्लिम उम्मीदवारों में 90 फीसदी से ज्यादा पसमांदा मुस्लिम हैं. यानी बीजेपी यूपी में अभी से अपने ‘मिशन-80’ में जुट गई है.
यूपी में मुस्लिम वोट बैंक
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मुस्लिम वोट बैंक भी हर पार्टी के लिए काफी ज्यादा अहम हो जाता है. मुस्लिमों को लुभाने के लिए हर बार तमाम दल कोशिश करते हैं. इस समुदाय का झुकाव मायावती की पार्टी बसपा और अखिलेश यादव की सपा की तरफ ही ज्यादा रहा है. पिछले कुछ चुनावों से ये देखने को मिला है कि मायावती की पार्टी से मुस्लिम वोट छिटके हैं, जिसका फायदा अब बीजेपी उठाना चाहती है. बीजेपी की कोशिश अखिलेश यादव के मुस्लिम-यादव समीकरण को कमजोर करने की है.
- उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों का वोट प्रतिशत करीब 20% है, जो अलग-अलग पार्टियों में बंटा हुआ है.
- उत्तर प्रदेश में करीब 140 सीटों पर मुस्लिम वोटर जीत-हार तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं.
- पिछले निकाय चुनाव में बीजेपी ने 187 उम्मीदवारों को टिकट दिया, सिर्फ दो ही उम्मीदवार चुनाव जीते
- उत्तर प्रदेश में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में कुल 403 सीटों में से 34 सीटें मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीती थीं, जो कि कुल सीटों का महज करीब 8 फीसदी था.
- विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले 34 मुस्लिम नेताओं में से 32 समाजवादी पार्टी से थे, जबकि बाकी दो राष्ट्रीय लोक दल के उम्मीदवार थे.