नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की ट्रिपल बेंच एक मामले को देखकर भौचक रह गई। दरअसल गुजरात सरकार एक ऐसे केस में अपील पर अपील दायर किए जा रही थी जिसमें एक रिटायर्ड मुलाजिम की पेंशन में 700 रुपये का इजाफा हो गया था। जस्टिस ने सॉलीसिटर जनरल की मौजूदगी में गुजरात सरकार की तरफ से पेश वकील को झाड़ लगाई। फिर उन्होंने हिदायत देते हुए कहा कि अगर केंद्र या राज्य की तरफ से ऐसी अपीलें दायर हुईं तो जुर्माना लगेगा।
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने कहा कि सरकारों की इस आदत की वजह से अदालतों पर मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है। उनका कहना था कि केंद्र और राज्यों की तरफ से दायर 40 फीसदी केस ऐसे हैं जिनका कहीं कोई मतलब नहीं है। ऐसे मुकदमों में अदालतों का समय तो खराब हो ही रहा है। जनता से टैक्स के रूप में वसूल सकी गई रकम को भी बिना वजह खर्च किया जा रहा है।
गुजरात सरकार लड़ रही है रिटायर्ड ड्राइवर से मुकदमा
मामले के मुताबिक एक ड्राइवर की पेंशन में गुजरात हाईकोर्ट ने 700 रुपये का मामूली इजाफा कर दिया था। सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। पहले सिंगल बेंच ने ये कहते हुए गुजरात सरकार की याचिका को खारिज कर दिया कि ये पब्लिक के पैसे की बर्बादी है। उसके बाद सरकार ने स्पेशल लीव पटीशन दायर कर दी। जस्टिस गवई की बेंच के सामने ये केस आया तो वो गुस्से में आगबबूला हो गए। उनका कहना था कि एक रिटायर्ड कर्मचारी को 700 रुपये का फायदा न मिले इसके लिए सरकार सात लाख रुपये तक खर्च करने से पीछे नहीं हटेगी।
सॉलीसिटर जनरल ने सुनाया पूर्व अटार्नी जनरल का एक किस्सा
जस्टिस गवई की बेंच ने कोर्ट रूम में मौजूद सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि ऐसी याचिकाएं क्यों दायर की जा रही हैं। मेहता का कहना था कि सरकार लॉ अफसर से मंत्रणा करने के बाद ऐसी याचिकाएं दायर करती है। एसजी ने मजाकिया अंदाज में कहा कि पूर्व अटार्नी जनरल ऑफ इंडिया सीके दफ्तरी से एक बार सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि ऐसी बेसिरपैर की याचिकाएं दायर करने से वो अपने क्लाइंट को रोकते क्यों नहीं हैं। उस याचिका में कुछ भी नहीं था। दफ्तरी बोले कि वो जानते हैं कि याचिका बेमतलब की है। लेकिन क्लाइंट को उनकी नहीं कोर्ट की सलाह चाहिए।
By जनसत्ता via Dailyhunt